
आज फिर नही आया ख़त तुम्हारा
जो पिछले मौसम से उधार है तुम पर
मौसम के हर एक सूरज का
एक ख़त भेजा था तुमको
और लिखा था
उस 'इमली के पौधे' के बारे में
जो आँगन में लगा गए थे तुम
सूख सा गया है आजकल कुछ
वो भी तुम्हारे ज़वाब की ताक में है, शायद
बरसात का पानी आज भी
बिस्तर तक आ जाता है
खिड़कियों को चीर कर
और नम हो जाता है तुम्हारा हिस्सा
कभी नमी महसूस हो तुम्हे भी तो
भेजना एक ख़त मेरे नाम
कुछ ना भी लिखो अगर तुम ख़त में
महज़ एक कोरा कागज़ भी काफी होगा.......
... अक्स