यूँ तो ये तारीख हर साल ही आती थी ,
और रख दी जाती थी संदूक में
एक बिन ज़वाब के ख़त की तरह ,
वक़्त से उधर लिया हर एक लम्हा
क़र्ज़ बन जाता था और
दीवार पे टंगे हुए दिन पलट जाया करते थे
जैसे हवा में पलट जाते हैं किसी किताब के पन्ने
बरसातें सूखी रह जाती थीं
जैसे बिन स्याही के मेरी कलम
पर क्यों आज लगता है ये दिन
पहली बार आया है मेरी ज़िन्दगी में
फिर से जन्मा हूँ मैं आज शायद ,
'पुनर्जन्म' हुआ है मेरा .......
...अक्स
Monday, November 22, 2010
Monday, February 15, 2010
ढूंढ लो अब कोई और ठिकाना...
कब से यूँ ही मुझमे घर कर रखा है तुमने ?
कभी पूछा तक नहीं !
मैं खुद ही किरायेदार हूँ ज़िन्दगी का
मेरा ठिकाना नहीं है कोई,
मेरे पास कुछ नहीं है जो मैं तुम्हे दे सकूंगा
बस प्रेम कर सकता था
जो किया मैंने तुमसे
पर अब सच्चाई की धरती पर आने के बाद
ख्वाब के आसमान खोखले दिखते हैं,
प्रेम से पेट नहीं भरता
भरे पेट से ही प्रेम हो सकता है
मैं नहीं रख सकूंगा तुम्हे भूखा
मैं नहीं देख सकूंगा तुम्हे ढलते हुए,
मैं कमजोर नहीं मजबूर हूँ शायद
नहीं रख सकता मैं तुम्हे और अपने दिल में
ढूंढ लो अब कोई और ठिकाना,
तुम्हारे बेघर हो जाने से
बेहतर है दूर चले जाना...
...अक्स
कभी पूछा तक नहीं !
मैं खुद ही किरायेदार हूँ ज़िन्दगी का
मेरा ठिकाना नहीं है कोई,
मेरे पास कुछ नहीं है जो मैं तुम्हे दे सकूंगा
बस प्रेम कर सकता था
जो किया मैंने तुमसे
पर अब सच्चाई की धरती पर आने के बाद
ख्वाब के आसमान खोखले दिखते हैं,
प्रेम से पेट नहीं भरता
भरे पेट से ही प्रेम हो सकता है
मैं नहीं रख सकूंगा तुम्हे भूखा
मैं नहीं देख सकूंगा तुम्हे ढलते हुए,
मैं कमजोर नहीं मजबूर हूँ शायद
नहीं रख सकता मैं तुम्हे और अपने दिल में
ढूंढ लो अब कोई और ठिकाना,
तुम्हारे बेघर हो जाने से
बेहतर है दूर चले जाना...
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श्रधांजली...
कल जब तुम्हे देखता था तो
कोई ख्याल नहीं आता था मन में
कभी भी किसी पल के साये में
तुमसे कोई सरोकार नहीं था
किसी भी हलचल में तुम्हारी परछाई नहीं देखी थी मैंने
और न ही कभी सुनी थी तुम्हारी हंसी
बस देखा था तुम्हे कभी चहकते हुए
बस नाम ही जानता था मैं तुम्हारा शायद
यूँ तो कुछ खास रिश्ता नहीं था तुमसे लेकिन
तुम्हारे जाने के बाद लगा
कि मौत बस छू कर निकल गयी मुझको.......
...अक्स
कोई ख्याल नहीं आता था मन में
कभी भी किसी पल के साये में
तुमसे कोई सरोकार नहीं था
किसी भी हलचल में तुम्हारी परछाई नहीं देखी थी मैंने
और न ही कभी सुनी थी तुम्हारी हंसी
बस देखा था तुम्हे कभी चहकते हुए
बस नाम ही जानता था मैं तुम्हारा शायद
यूँ तो कुछ खास रिश्ता नहीं था तुमसे लेकिन
तुम्हारे जाने के बाद लगा
कि मौत बस छू कर निकल गयी मुझको.......
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Saturday, February 13, 2010
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