Monday, February 15, 2010

ढूंढ लो अब कोई और ठिकाना...

कब से यूँ ही मुझमे घर कर रखा है तुमने ?
कभी पूछा तक नहीं !
मैं खुद ही किरायेदार हूँ ज़िन्दगी का
मेरा
ठिकाना नहीं है कोई,

मेरे पास कुछ नहीं है जो मैं तुम्हे दे सकूंगा
बस प्रेम कर सकता था
जो किया मैंने तुमसे
पर अब सच्चाई की धरती पर आने के बाद
ख्वाब के आसमान खोखले दिखते हैं,

प्रेम से पेट नहीं भरता
भरे पेट से ही प्रेम हो सकता है
मैं नहीं रख सकूंगा तुम्हे भूखा
मैं नहीं देख सकूंगा तुम्हे ढलते हुए,


मैं कमजोर नहीं मजबूर हूँ शायद
नहीं रख सकता मैं तुम्हे और अपने दिल में
ढूंढ लो अब
कोई और ठिकाना,

तुम्हारे बेघर हो जाने से
बेहतर है दूर चले जाना
...

...अक्स

श्रधांजली...

कल जब तुम्हे देखता था तो
कोई ख्याल नहीं आता था मन में
कभी भी किसी पल के साये में
तुमसे कोई सरोकार नहीं था

किसी भी हलचल में तुम्हारी परछाई नहीं देखी थी मैंने
और ही कभी सुनी थी तुम्हारी हंसी
बस देखा था तुम्हे कभी चहकते हुए
बस नाम ही जानता था मैं तुम्हारा शायद

यूँ तो कुछ खास रिश्ता नहीं था तुमसे लेकिन
तुम्हारे जाने के बाद लगा
कि मौत बस छू कर निकल गयी मुझको.......

...अक्स

Saturday, February 13, 2010

अँधेरा और मैं.......

हर बार लड़ कर हारा हूँ मैं अँधेरे से
यूँ ही नहीं मैंने एक लौ जला रखी है...

-अक्स