सारे तर्क वितर्कों से परे औपचारिकताओं से ऊपर उठ कर मेरे ऊटपटांग बातों का अर्थ और उन अर्थों का सन्दर्भ कौन समझता ? अगर न होते "कुछ 'दोस्त ', कुछ 'वफादार ' साथी जिन्होंने निभाया साथ छप्पर फाड़ के"
जिस तरह टूट के गिरती है एक बूँद आसमान से और ज़िन्दगी बन जाती है, उसी तरह वक़्त के बदन से टूटे हुए एक अक्स हैं हम सब, एक ख्याल हैं हम जिसे अलग अलग नाम दे दिया है...!