Tuesday, March 17, 2009

सोना...

ज़रा असमान की तरफ़ देखो सोना, चाँद का दाग मिट गया है आज,
प्यार ने अपना रंग दिखा दिया है ,

तुम कहती थी सोना ! कि प्यार एक जंग है,
अगर ये जंग होती तो मैं कब का मर गया होता;

तुम कहती थी , कि वक्त बदल जाता है ,
वक्त तो नही बदला सोना, पर हाँ इसकी रफ़्तार ज़रूर बदल गई है
और इस रफ़्तार में बह गया है बहुत कुछ-
तुम , मैं ...

पर तुम्हारी कुछ चीज़ें और वो ख़त , बस एक ही ख़त , आज भी मेरे पास है
और तुम्हारे कुछ शब्दों को अपने जीवन में उतार लिया है मैंने
और अपने नाम में शामिल कर लिया है तुम्हारा नाम;

लिख सकता तुम्हे तो ज़रूर लिखता तुम्हारा नाम अपने लहू से सोना
पर लहू तो कब का सूख चुका है मेरे अन्दर से
वो तो तुम्हारी याद है जो अब तक मेरे रगों में दौड़ रही है .......

...अक्स