Tuesday, March 17, 2009

सोना...

ज़रा असमान की तरफ़ देखो सोना, चाँद का दाग मिट गया है आज,
प्यार ने अपना रंग दिखा दिया है ,

तुम कहती थी सोना ! कि प्यार एक जंग है,
अगर ये जंग होती तो मैं कब का मर गया होता;

तुम कहती थी , कि वक्त बदल जाता है ,
वक्त तो नही बदला सोना, पर हाँ इसकी रफ़्तार ज़रूर बदल गई है
और इस रफ़्तार में बह गया है बहुत कुछ-
तुम , मैं ...

पर तुम्हारी कुछ चीज़ें और वो ख़त , बस एक ही ख़त , आज भी मेरे पास है
और तुम्हारे कुछ शब्दों को अपने जीवन में उतार लिया है मैंने
और अपने नाम में शामिल कर लिया है तुम्हारा नाम;

लिख सकता तुम्हे तो ज़रूर लिखता तुम्हारा नाम अपने लहू से सोना
पर लहू तो कब का सूख चुका है मेरे अन्दर से
वो तो तुम्हारी याद है जो अब तक मेरे रगों में दौड़ रही है .......

...अक्स

Sunday, February 8, 2009

मौसम का ख़त .......





आज फिर नही आया ख़त तुम्हारा
जो पिछले मौसम से उधार है तुम पर

मौसम के हर एक सूरज का
एक ख़त भेजा था तुमको
और लिखा था
उस 'इमली के पौधे' के बारे में
जो आँगन में लगा गए थे तुम

सूख सा गया है आजकल कुछ
वो भी तुम्हारे ज़वाब की ताक में है, शायद

बरसात का पानी आज भी
बिस्तर तक जाता है
खिड़कियों को चीर कर
और नम हो जाता है तुम्हारा हिस्सा

कभी नमी महसूस हो तुम्हे भी तो
भेजना एक ख़त मेरे नाम

कुछ ना भी लिखो अगर तुम ख़त में
महज़ एक कोरा कागज़ भी काफी होगा.......

... अक्स

Saturday, January 31, 2009

वक्त की रफ़्तार ...

देखा है उम्मीदों को घुटनों के बल चलते हुए
देखा है हकीकत को ख्वाब में बदलते हुए,
हर मौत, ज़िन्दगी का रूप इख्तियार कर रही है
लगता है वक्त की रफ़्तार कुछ बढ़ गई है;

उस मोड़ पर वो 'इमली का पेड़' सूख सा गया है
और चाय कि दुकान भी जाने खो गयी है कहीं
तारीख तो वही है पर हाँ सालों गुज़र गए
क्या वाकई वक्त की रफ़्तार कुछ बढ़ गई है ?

-अक्स

Wednesday, January 28, 2009

लकीर

देखा था कल एक लकीर को अपने हाथों में बनते हुए,
गुम हो गई है आज कहीं वो पुरानियों के बीच.......

Saturday, January 10, 2009

पुनर्जन्म ...

यूँ तो ये तारीख हर साल ही आती थी ,
और रख दी जाती थी संदूक में
एक बिन ज़वाब के ख़त की तरह ,

पर क्यों आज लगता है ये दिन
पहली बार आया है मेरी ज़िन्दगी में

फिर से जन्मा हूँ मैं आज शायद ,
'पुनर्जन्म' हुआ है मेरा .......

...अक्स