यूँ तो ये तारीख हर साल ही आती थी ,
और रख दी जाती थी संदूक में
एक बिन ज़वाब के ख़त की तरह ,
पर क्यों आज लगता है ये दिन
पहली बार आया है मेरी ज़िन्दगी में
फिर से जन्मा हूँ मैं आज शायद ,
'पुनर्जन्म' हुआ है मेरा .......
...अक्स
Saturday, January 10, 2009
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पुनर्जन्म के इस अहसास को ताजिंदगी ख़ुद से दूर न होने देना.......यही अहसास मुर्दों को भी जीने का हक़ दे देता है............
ReplyDeleteआलोक सिंह "साहिल"