Monday, March 3, 2014

नक़ाब

जल गया है नक़ाब पुराना ज़िन्दगी की नयी धूप में,
अगली बार जले तो शायद चेहरा ही बदलना होगा...


-अक्स

Wednesday, January 22, 2014

साथी

सारे तर्क वितर्कों से परे 
औपचारिकताओं से ऊपर उठ कर 
मेरे ऊटपटांग बातों का अर्थ 

और उन अर्थों का सन्दर्भ 
कौन समझता ?
अगर न होते 
"कुछ 'दोस्त ', कुछ 'वफादार ' साथी जिन्होंने निभाया साथ छप्पर फाड़ के" 

Monday, June 20, 2011

उड़ान ...

कुछ हाल ही में बदले हैं
रंग इन फूलों के ,
हाल ही में बदली है
हवाओं ने अपनी रफ़्तार;
कुछ देर ही पहले खोला है
फलक ने अपना सीना,
कुछ देर ही हुआ है
कि टूटे हैं सरहद के दीवार;

बस पलों में ही जगी हैं
कुछ उम्मीदें नयी,
बस अभी ही जन्मी हैं
ताज़ा खुशबुवें कई;

चलो इस बाजुओं को पंख बना लें
चलो उन ख्वाबों को फिर से जगा लें
चलो ना चाँद से करके आयें बातें,
चलो ना, सोना! चलो ना हम भी
तोड़ें ये जंजीरें, और एक उड़ान भरें भरोसे की !

-अक्स

Sunday, June 12, 2011

नज़्म...

जब भी टपकी एक बूँद तुम्हारी आँखों से,
एक मिसरा बन गयी !
तुम्हारी आवाज़ के हर टुकड़े को जोड़ा मैंने ,
और सिला हर एक उधडे हुए कोने को!
ख्वाबों को सींच के,
एक इमेज तैयार किया,
और उधार लिए कुछ लब्ज़ माज़ी से !

एक ख्याल था जिसे पाल पोश के बड़ा किया
और नज़्म कह दिया
एक नाम की कमी थी जो तुमने पूरी की !

-अक्स

Monday, November 22, 2010

पुनर्जन्म...

यूँ तो ये तारीख हर साल ही आती थी ,
और रख दी जाती थी संदूक में
एक बिन ज़वाब के ख़त की तरह ,

वक़्त से उधर लिया हर एक लम्हा
क़र्ज़ बन जाता था और
दीवार पे टंगे हुए दिन पलट जाया करते थे
जैसे हवा में पलट जाते हैं किसी किताब के पन्ने

बरसातें सूखी रह जाती थीं
जैसे बिन स्याही के मेरी कलम

पर क्यों आज लगता है ये दिन
पहली बार आया है मेरी ज़िन्दगी में

फिर से जन्मा हूँ मैं आज शायद ,
'पुनर्जन्म' हुआ है मेरा .......

...अक्स

Monday, February 15, 2010

ढूंढ लो अब कोई और ठिकाना...

कब से यूँ ही मुझमे घर कर रखा है तुमने ?
कभी पूछा तक नहीं !
मैं खुद ही किरायेदार हूँ ज़िन्दगी का
मेरा
ठिकाना नहीं है कोई,

मेरे पास कुछ नहीं है जो मैं तुम्हे दे सकूंगा
बस प्रेम कर सकता था
जो किया मैंने तुमसे
पर अब सच्चाई की धरती पर आने के बाद
ख्वाब के आसमान खोखले दिखते हैं,

प्रेम से पेट नहीं भरता
भरे पेट से ही प्रेम हो सकता है
मैं नहीं रख सकूंगा तुम्हे भूखा
मैं नहीं देख सकूंगा तुम्हे ढलते हुए,


मैं कमजोर नहीं मजबूर हूँ शायद
नहीं रख सकता मैं तुम्हे और अपने दिल में
ढूंढ लो अब
कोई और ठिकाना,

तुम्हारे बेघर हो जाने से
बेहतर है दूर चले जाना
...

...अक्स

श्रधांजली...

कल जब तुम्हे देखता था तो
कोई ख्याल नहीं आता था मन में
कभी भी किसी पल के साये में
तुमसे कोई सरोकार नहीं था

किसी भी हलचल में तुम्हारी परछाई नहीं देखी थी मैंने
और ही कभी सुनी थी तुम्हारी हंसी
बस देखा था तुम्हे कभी चहकते हुए
बस नाम ही जानता था मैं तुम्हारा शायद

यूँ तो कुछ खास रिश्ता नहीं था तुमसे लेकिन
तुम्हारे जाने के बाद लगा
कि मौत बस छू कर निकल गयी मुझको.......

...अक्स