कुछ हाल ही में बदले हैं
रंग इन फूलों के ,
हाल ही में बदली है
हवाओं ने अपनी रफ़्तार;
कुछ देर ही पहले खोला है
फलक ने अपना सीना,
कुछ देर ही हुआ है
कि टूटे हैं सरहद के दीवार;
बस पलों में ही जगी हैं
कुछ उम्मीदें नयी,
बस अभी ही जन्मी हैं
ताज़ा खुशबुवें कई;
चलो इस बाजुओं को पंख बना लें
चलो उन ख्वाबों को फिर से जगा लें
चलो ना चाँद से करके आयें बातें,
चलो ना, सोना! चलो ना हम भी
तोड़ें ये जंजीरें, और एक उड़ान भरें भरोसे की !
-अक्स
Monday, June 20, 2011
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बहुत खूबसूरत...चलों आज चांद से दो गल करके आते हैं
ReplyDeletekavi hain aap bhai :)
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