Sunday, June 12, 2011

नज़्म...

जब भी टपकी एक बूँद तुम्हारी आँखों से,
एक मिसरा बन गयी !
तुम्हारी आवाज़ के हर टुकड़े को जोड़ा मैंने ,
और सिला हर एक उधडे हुए कोने को!
ख्वाबों को सींच के,
एक इमेज तैयार किया,
और उधार लिए कुछ लब्ज़ माज़ी से !

एक ख्याल था जिसे पाल पोश के बड़ा किया
और नज़्म कह दिया
एक नाम की कमी थी जो तुमने पूरी की !

-अक्स

1 comment:

  1. ek naam ki kami thi jo tumne poori ki ... sahi hai dost! tum to gehre hote jaa rahe ho!

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