कब से यूँ ही मुझमे घर कर रखा है तुमने ?
कभी पूछा तक नहीं !
मैं खुद ही किरायेदार हूँ ज़िन्दगी का
मेरा ठिकाना नहीं है कोई,
मेरे पास कुछ नहीं है जो मैं तुम्हे दे सकूंगा
बस प्रेम कर सकता था
जो किया मैंने तुमसे
पर अब सच्चाई की धरती पर आने के बाद
ख्वाब के आसमान खोखले दिखते हैं,
प्रेम से पेट नहीं भरता
भरे पेट से ही प्रेम हो सकता है
मैं नहीं रख सकूंगा तुम्हे भूखा
मैं नहीं देख सकूंगा तुम्हे ढलते हुए,
मैं कमजोर नहीं मजबूर हूँ शायद
नहीं रख सकता मैं तुम्हे और अपने दिल में
ढूंढ लो अब कोई और ठिकाना,
तुम्हारे बेघर हो जाने से
बेहतर है दूर चले जाना...
...अक्स
Monday, February 15, 2010
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nice
ReplyDeleteNice one Birju...Keep them coming !!!!
ReplyDeleteNice one bhaiya! :)
ReplyDeleteThank You All! :)
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