देखा है उम्मीदों को घुटनों के बल चलते हुए
देखा है हकीकत को ख्वाब में बदलते हुए,
हर मौत, ज़िन्दगी का रूप इख्तियार कर रही है
लगता है वक्त की रफ़्तार कुछ बढ़ गई है;
उस मोड़ पर वो 'इमली का पेड़' सूख सा गया है
और चाय कि दुकान भी जाने खो गयी है कहीं
तारीख तो वही है पर हाँ सालों गुज़र गए
क्या वाकई वक्त की रफ़्तार कुछ बढ़ गई है ?
-अक्स
Saturday, January 31, 2009
Wednesday, January 28, 2009
Saturday, January 10, 2009
पुनर्जन्म ...
यूँ तो ये तारीख हर साल ही आती थी ,
और रख दी जाती थी संदूक में
एक बिन ज़वाब के ख़त की तरह ,
पर क्यों आज लगता है ये दिन
पहली बार आया है मेरी ज़िन्दगी में
फिर से जन्मा हूँ मैं आज शायद ,
'पुनर्जन्म' हुआ है मेरा .......
...अक्स
और रख दी जाती थी संदूक में
एक बिन ज़वाब के ख़त की तरह ,
पर क्यों आज लगता है ये दिन
पहली बार आया है मेरी ज़िन्दगी में
फिर से जन्मा हूँ मैं आज शायद ,
'पुनर्जन्म' हुआ है मेरा .......
...अक्स
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