Saturday, January 31, 2009

वक्त की रफ़्तार ...

देखा है उम्मीदों को घुटनों के बल चलते हुए
देखा है हकीकत को ख्वाब में बदलते हुए,
हर मौत, ज़िन्दगी का रूप इख्तियार कर रही है
लगता है वक्त की रफ़्तार कुछ बढ़ गई है;

उस मोड़ पर वो 'इमली का पेड़' सूख सा गया है
और चाय कि दुकान भी जाने खो गयी है कहीं
तारीख तो वही है पर हाँ सालों गुज़र गए
क्या वाकई वक्त की रफ़्तार कुछ बढ़ गई है ?

-अक्स

Wednesday, January 28, 2009

लकीर

देखा था कल एक लकीर को अपने हाथों में बनते हुए,
गुम हो गई है आज कहीं वो पुरानियों के बीच.......

Saturday, January 10, 2009

पुनर्जन्म ...

यूँ तो ये तारीख हर साल ही आती थी ,
और रख दी जाती थी संदूक में
एक बिन ज़वाब के ख़त की तरह ,

पर क्यों आज लगता है ये दिन
पहली बार आया है मेरी ज़िन्दगी में

फिर से जन्मा हूँ मैं आज शायद ,
'पुनर्जन्म' हुआ है मेरा .......

...अक्स